ईरान को श्राप: जानें कौन थी आतेफा साहलेह, क्यों 16 साल की उम्र में दी गई थी फांसी, पढ़ें दर्दनाक कहानी
Iran News: 15 अगस्त 2004 को ईरान के नेका शहर में 16 साल की आतेफा साहलेह को क्रेन पर सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई। उन पर एक पुरुष के साथ यौन संबंध का आरोप लगा था। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के अनुसार, जज हाजी रेजाई ने निजी रंजिश के कारण उनकी उम्र 22 साल दर्ज की, ताकि ईरानी कानून के तहत फांसी दी जा सके। यह मामला अब ईरान को श्राप की सोशल मीडिया चर्चाओं के साथ फिर से सुर्खियों में है, क्योंकि लोग इसे देश की अशांति से जोड़ रहे हैं।
आतेफा साहलेह की त्रासद जिंदगी
आतेफा का जीवन शुरू से ही दुखों से भरा था। पांच साल की उम्र में उनकी मां की कार दुर्घटना में मौत हो गई। उनके छोटे भाई की नदी में डूबने से मृत्यु हुई। पिता नशे की लत में डूब गए, जिससे आतेफा को अपने बुजुर्ग दादा-दादी की देखभाल करनी पड़ी। 13 साल की उम्र में उन्हें पहली बार अनैतिक व्यवहार के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बाद में, एक 51 साल के पूर्व क्रांतिकारी गार्ड, अली दराबी, द्वारा बार-बार बलात्कार का शिकार होने के बाद उन पर व्यभिचार का आरोप लगा। आतेफा ने कोर्ट में बताया कि उनके साथ दुष्कर्म हुआ, लेकिन उनकी आवाज दबा दी गई।
कोर्ट में अन्याय और फांसी
आतेफा ने कोर्ट में जज हाजी रेजाई के खिलाफ खुलकर विरोध किया। उन्होंने अपना हिजाब उतारा और जज पर जूता फेंका, जिसे कोर्ट की अवमानना माना गया। जज ने उनकी उम्र को गलत तरीके से 22 साल दर्ज किया, क्योंकि ईरान में 18 साल से कम उम्र वालों को फांसी देना अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन था। ईरान ने 1966 में अंतरराष्ट्रीय नागरिक और राजनीतिक अधिकार संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जो नाबालिगों की फांसी पर रोक लगाती है। फिर भी, आतेफा को क्रूरता से फांसी दी गई। बाद में, जज रेजाई और बलात्कारी अली दराबी को गिरफ्तार किया गया, लेकिन आतेफा को न्याय नहीं मिला।
ईरान को श्राप की सोशल मीडिया चर्चा
13 जून 2025 को इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों और सैन्य कमांडरों पर हमले किए, जिसमें कई न्यूक्लियर साइंटिस्ट और अधिकारी मारे गए। तेहरान में तबाही और सत्ता परिवर्तन की अटकलों के बीच सोशल मीडिया पर आतेफा की कहानी फिर से वायरल हो रही है। लोग दावा कर रहे हैं कि उनकी बद्दुआ ने ईरान को श्राप दिया, जिसके कारण देश में अशांति बनी हुई है। हालांकि यह दावा भावनात्मक और अतार्किक है, लेकिन यह मानवाधिकारों और न्यायिक प्रणाली की खामियों पर सवाल उठाता है।
वैश्विक प्रतिक्रिया और मानवाधिकार
आतेफा की फांसी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्तब्ध कर दिया। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे मानवता और बच्चों के खिलाफ अपराध करार दिया। ईरान की सुप्रीम कोर्ट ने बाद में आतेफा को मरणोपरांत माफी दी, लेकिन यह औपचारिकता मात्र थी। 2006 में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री “Execution of a Teenage Girl” ने इस मामले को वैश्विक मंच पर लाकर ईरान की न्यायिक प्रणाली की क्रूरता को उजागर किया। मानवाधिकार संगठनों ने ईरान में नाबालिगों को फांसी देने की प्रथा की कड़ी निंदा की, क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकारों के कन्वेंशन का उल्लंघन है।
ईरान में फांसी की सजा का इतिहास
ईरान में फांसी की सजा का इस्तेमाल लंबे समय से विवादास्पद रहा है। 2021 में, नार्वे स्थित ईरान ह्यूमन राइट्स के अनुसार, देश में कम से कम 333 लोगों को फांसी दी गई थी। 2023 में, 17 साल के एक नाबालिग हामिद्रेजा अजारी को हत्या के आरोप में फांसी दी गई, जिसे मानवाधिकार संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया। आतेफा का मामला भी इसी क्रूर प्रथा का हिस्सा था, जहां नाबालिगों और महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण कानूनों का दुरुपयोग होता है।
आतेफा साहलेह की कहानी न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि यह ईरान की न्यायिक प्रणाली में व्याप्त लैंगिक और मानवाधिकार उल्लंघनों का प्रतीक भी है। उनकी कहानी आज भी लोगों को यह सवाल उठाने के लिए प्रेरित करती है कि क्या एक मासूम की पीड़ा वाकई में ईरान को श्राप दे सकती है, या यह केवल एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है जो गहरे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को दर्शाती है।