देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता,
कि एक हिस्से के फट जाने पर बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियाँ, पर्वत, शहर, गाँव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें, अनमने रहें
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा कुछ भी नहीं है,
न ईश्वर, न ज्ञान, न चुनाव
कागज़ पर लिखी कोई भी इबारत फाड़ी जा सकती है,
और ज़मीन की सात परतों के भीतर गाड़ी जा सकती है
जो विवेक खड़ा हो लाशों को टेक,
वह अंधा है
जो शासन चल रहा हो बंदूक की नली से,
हत्यारों का धंधा है
~ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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