दैनिक अखबार दिव्य हिमाचल को कर्मचारी को निकलना पड़ा भारी, हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट को दिए 6 महीने में रिकवरी केस निपटाने के आदेश
Himachal News: हिमाचल प्रदेश के हिंदी दैनिक अखबार दिव्य हिमाचल को मजीठिया वेजबोर्ड की रिकवरी के मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की बैंच ने कंपनी की ओर से लेबर ऑफिसर के रेफरेंस आर्डर को खारिज करने की याचिका को निरस्त करते हुए एक विस्तृत फैसला सुनाया है।
दिनांक 03 दिसंबर, 2024 को सुनाया गया फैसला आज कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड हुआ। इसमें प्रतिवादी अखबार कर्मी को राहत देते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने लेबर कोर्ट धर्मशाला में लंबित प्रतिवादी कर्मचारी के मीजिठिया वेजबोर्ड के तहत रिकवरी के केस की जल्द सुनवाई करते हुए लेबर कोर्ट को माननीय सुप्रीम कोर्ट के छह माह के टाइम बाउंड आर्डर का पालन करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
ज्ञात रहे कि मैसर्ज दिव्य हिमाचल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम सुनील कुमार एवं अन्य मामले में प्रबंधन ने सिविल रिट पेटिशन दायर करके लेबर ऑफिसर एवं वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट, 1955 (डब्ल्यूजे एक्ट) की धारा 17 के तहत नामित अथॉरिटी की नोटिफिकेशन दिनांक 6 जनवरी, 2020 के तहत लेबर कोर्ट धर्मशाला को अधिनिर्णय के लिए रेफर किए गए रिकवरी के मामले को चुनौती दी थी। कंपनी ने रेफरेंस को यह कहते हुए खारिज करने की अपील की थी कि प्रतिवादी अखबारकर्मी ने डब्ल्यूजे एक्ट की धारा 17(1) के तहत पहले भी लेबर आफिसर धर्मशाला के पास एक एप्लिकेशल दाखिल की थी, जिसे लेबर ऑफिसर ने अपने आदेश दिनांक 15 अक्तूबर, 2018 के तहत रिजेक्ट कर दिया था। इस आदेश को प्रतिवादी अखबार कर्मचारी ने हाईकोर्ट में चुनौती देने के बजाय पहले के लेबर ऑफिसर की ट्रांस्फर के बाद उसकी जगह आए दूसरे लेबर ऑफिसर के पास दोबारा से नई एप्लिकेशन डाल कर दिनांक 6 जनवरी, 2020 को रेफरेंस आर्डर प्राप्त कर लिया, जिसे खारिज करने की मांग इस याचिका में की गई थी।
दरअसल, अखबारकर्मी एवं दिव्य हिमाचल में माली के पद पर कार्यरत सुनील कुमार को कंपनी ने बिना किसी नियुक्ति पत्र के 2011 में रखा गया था और उसे मामूली तनख्वाह दी जाती थी। इस बीच मजीठिया वेजबोर्ड देने से बचने के लिए अखबार ने अपने नियमित कर्मचारियों से जबरन इस्तीफा लेना शुरू किया और जो कर्मचारी रिकार्ड में थे ही नहीं उन्हें मौखिक तौर पर नौकरी से हटाने की कवायद शुरू कर दी। वहीं सुनील कुमार ने नौकरी से हटाए जाने से पहले ही दिनांक 23 अप्रैल, 2018 को मजीठिया वेजबोर्ड के तहत रिकवरी की एप्लिकेशन लेबर ऑफिसर कम अथॉरिटी धर्मशाला के पास दायर कर दी थी। इसके जबाव में प्रबंधन ने इस अखबारकर्मी के बारे में लिखा कि वादी उनके संस्थान का कर्मचारी ही नहीं है, उसे तो कंपनी के सीएमडी ने अपने घर के नौकर के तौर पर रखा है। वादी ने रिज्वाइंडर फाइल करके इस विवाद को लेबर कोर्ट को रेफर करने की अपील की, मगर लेबर ऑफिसर ने प्रबंधन से सांठगांठ करके खुद ही इस मामले में अधिनिर्णय करते हुए दिनांक 15 मई, 2019 को अवैध फैसला लिख डाला।
इस बीच अखबारकर्मी सुनील को प्रबंधन ने नौकरी से भी हटा दिया। नौकरी चले जाने और मेहनत मजदूरी करने के काबिल ना होने के चलते वादी इस फैसले को सीधे हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दे सका, तो उसके एआर (न्यूजपेपर इम्पलाइज यूनियन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रविंद्र अग्रवाल) की सलाह पर इसकी शिकायत हिमाचल प्रदेश सरकार के सेक्रेटरी(लेबर) और लेबर कमीशनर से की और लेबर ऑफिसर के फैसले को गैरकानूनी व अवैध बताते हुए डब्ल्यूजे एक्ट की धारा 17(2) के तहत रेफरेंस की मांग की। इस पर दोनों ही आला अधिकारियों ने पत्र लिख कर तत्कालीन लेबर ऑफिसर को अपने फैसले पर पुनर्विचार करते हुए कानून के तहत कार्यवाही करने के आदेश दिए, मगर उसने नहीं माना और अधिकारियों को पत्र लिख कर जवाब दिया कि उसके पास अपने फैसले को रिव्यू करने की पावर नहीं है। इस अधिकारी की हठधर्मिता के चलते उसका तबादला किया गया और उसकी जगह आए कार्यभार संभालने पहुंचे अन्य लेबर ऑफिसर से जब अखबारकर्मी ने संपर्क किया और आला अधिकारियों के आदेशों के बारे में अवगत करवाया। इस पर लेबर ऑफिसर ने सलाह दी कि नया क्लेम डाल दें। इस पर सुनील के एआर ने अधिकारी को लिखित तौर पर निर्देश जारी करने की अपील की जिस पर लेबर ऑफिसर ने दिनांक 20 सितंबर, 2019 को पत्र लिख कर सुनील कुमार को नए सिरे से अपना रिकवरी क्लेम डालने की सलाह दी थी।
इस पर सुनील ने दिनांक 23 सितंबर, 2019 को डब्ल्यूजे एक्ट की धारा 17(2) के तहत नया क्लेम दाखिल किया और लेबर ऑफिसर के नोटिस के बाद प्रबंधन ने अपना जवाब दायर करते हुए फिर से उसके क्लेम को यह कहते हुए खरीज करने की मांग की कि आवेदनकर्ता इस समाचार प्रतिष्ठान का कर्मचारी नहीं है और इसे संस्थान के सीएमडी ने व्यक्तिगत तौर पर अपने घर के नौकर के रूप में रखा था और वो ही अपनी जेब से इसे वेतन देते थे। कर्मचारी ने अपने रिज्वाइंडर में संस्थान की ओर से लोन लेने के लिए दी गए सेलरी स्लीप व अन्य रिकार्ड लगाते हुए संस्थान के आरोपों से इनकार किया और अपने क्लेम को दोहराया। इस तरह विवाद होने पर लेबर ऑफिसर ने बतौर अथारिटी इस विवाद को एक्ट की धारा 17(2) के तहत 06 जनवरी, 2020 को लेबर कोर्ट के पास अधिनिर्णय के लिए रेफर कर दिया था।
दिव्य हिमाचल ने इन आदेशों को माननीय उच्च न्यायालय शिमला में चुनौती देते हुए कहा कि एक तो प्रतिवादी ने अपना क्लेम पहले रिजेक्ट किए जाने के पूर्व के लेबर ऑफिसर के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी, जिसके चलते उस पर कानूनी तौर पर दोबारा वही विवाद उठाने पर रोक लग चुकी थी। ऐसे में नए लेबर आफिसर ने इस बात को ध्यान में रखे बिना नए आवेदन पर रेफरेंस कर दिया जो विधिसम्मत नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए।
वादी पक्ष के वकील की दलीलों का प्रतिवादी पक्ष में शामिल कर्मचारी और सरकार के अधिवक्ताओं ने कड़ाई से विरोध किया और कहा कि जब लेबर आफिसर को डब्ल्यूजे एक्ट की धारा 17(1) के तहत समाचार संस्थान की ओर से उठाए गए प्रश्नों पर अधिनिर्णय देने की शक्तियां ही नहीं थी तो उसका दिनांक 15 मई, 2019 को दिया गया आदेश अवैध है और पौषणीय ही नहीं है। वहीं उसकी कार्यवाही एक प्रशासनिक कार्यवाही थी, जिसे कभी भी बदला जा सकता है। इसके अलावा वादी ने लेबर विभाग के उच्च अधिकारियों के समक्ष भी लेबर आफिसर के अवैध फैसले के बारे में आपत्ति दर्ज करवा कर उचित निर्णय की मांग की थी। इसके बावजूद उसने अपना निर्णय नहीं बदला। हालांकि उसकी जगह तैनात अन्य लेबर आफिसर ने वहीं शक्तियों का इस्तेमाल करके हुए बाद में आवेदनकर्ता को लिखित तौर पर नए सिरे से एक्ट की धारा 17(1) के तहत क्लेम एप्लिकेशन दायर करने की इजाजत दे दी थी। इसका वादी संस्थान ने जवाब भी दिया और इस आधार पर ही लेबर कोर्ट को रेफरेंस भेजा गया।
माननीय उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में ना केवल लेबर आफिसर के दिनांक 06 जनवरी, 2020 को भेजे गए रेफरेंस आर्डर को वैध बताया है, बल्कि यह भी कहा है कि पूर्व में लेबर आफिसर धर्मशाला के पद पर तैनात व्यक्ति को 17(1) के तहत दायर आवेदन को खारीज करने के अधिकार ही नहीं था, जबकि समाचार प्रतिष्ठान की ओर से इस आवेदन पर उठाए गए सवालों को धारा 17(2) के तहत लेबर कोर्ट को भेजा जाना चाहिए था, जिसे विवाद का अधिनिर्णय करने का अधिकार है। इतना ही नहीं माननीय उच्च न्यायालय ने लेबर कोर्ट को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के टाइम बाउंड आदेशों के तहत इस विवाद को 6 माह में निपटाने के निर्देश भी जारी किए हैं।
टर्मीनेशन मामले में भी हुई है जीत मिलने लगी है पेमेंट
सुनील कुमार को टर्मीनेशन के मामले में भी हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से राहत मिल चुकी है। उसे लेबर कोर्ट ने सौ फीसदी पूर्व के वेतन के साथ नौकरी पर समस्त लाभ सहित बहाल किया था। दिव्य हिमाचल प्रबंधन ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी तो माननीय हाईकोर्ट ने इस फैसले पर इस शर्त पर स्टे करने के आदेश जारी किए कि प्रबंधन को आईडी एक्ट की धारा 17बी के तहत कर्मचारी को फुल बैक वेजेज देनी होगी। हालांकि कंपनी प्रबंधन ने इन आदेशों का आंशिक पालन किया है और सुनील कुमार को गुजारे के लिए वर्ष 2017 में दिए जा रहे वेतन की पेमेंट होने लगी है। जबकि कानून उसे मजीठिया वेजबोर्ड के तहत लेबर कोर्ट के आर्डर दिनांक 31.07.2024 को बनने वाले वेतनमान के तहत सैलरी जारी की जानी चाहिए थी। फिलहाल मामला हाईकोर्ट में लंबित है।
माननीय हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की जजमेंट और आदेश कोर्ट की वेबसाइट से सीडब्ल्यूपी नंबर 2863/2020 और सीडब्ल्यूपी नंबर 12430/2024 डाल कर प्राप्त किए जा सकते हैं।
(यह खबर सामाचार पत्र कर्मचारी और उसके एआर से प्राप्त जानकारी के आधार पर खबर के तौर पर लिखी गई है। जबकि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश कोर्ट की वेबसाइट से प्राप्त किए जा सकते हैं। खबर में कोर्ट के आदेशों की पूर्ण जानकारी शामिल नहीं है )
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