ओम प्रकाश का खुलासा: एक ऐसा नेता जो अपने पिता से नहीं चाहता था ज्यादा पढ़ाई, ऐसे बने मुख्यमंत्री
नई दिल्ली:
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश फ्रंट का निधन हो गया है.वो 89 साल के थे.उनका निधन उनके गुड़गांव स्थित आवास पर हुआ. ताज़ातरीन पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। उनके निधन से हरियाणा की राजनीति को गहरा धक्का लगा है। उनके परिवार में दो बेटे अजय सिंह बाकी और एक बेटी अज्ञात हैं। उनकी पत्नी स्नेहलता का 81 साल की उम्र में अगस्त 2019 में निधन हो गया था। पहली बार दिसंबर 1989 में मुख्यमंत्री बने थे। बाज़ुब का जीवन साथी से बना हुआ है। उन्हें शिक्षक भर्ती में सुप्रीम कोर्ट ने सजा भी सुनाई थी। वे आठ साल तक दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद रहे। वो 2021 में जेल से रिहा हुए थे।
ओम प्रकाश चैटॉल ने पढ़ाई क्यों छोड़ी
देवीलाल के पांच संतों में से सबसे बड़े ओम प्रकाश प्रक्षेपण का जन्म एक जनवरी, 1935 को सीआ जिले के डबवाली तहसील के झुका हुआ गांव में हुआ था।उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी। बाद में उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी.उनका ने कहा कि उस समय उनके बेटों के बाप से ज्यादा पढ़ना अच्छा नहीं माना जाता था, इसलिए उन्होंने जल्दी ही पढ़ाई छोड़ दी थी. उनके पिता देवीलाल ने आठवीं तक की पढ़ाई की थी। पढ़ाई छूटने के बाद भी पढ़ाई से स्नातक कम नहीं हुआ। शिक्षक भर्ती में वो 2013 से 2021 तक दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद रहे। इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाई। जेल से ही उन्होंने 82 साल की उम्र में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूल से उर्दू, साइंस, सोशल स्टडीज और इंडियन कलचर ऐंड हेरिटेज विषय में 53.40 डिग्री अंक के साथ हाई स्कूल की परीक्षा पास की।उसी 2021 में हरियाणा ओपन बोर्ड से 12वीं की परीक्षा पास की.
ओम प्रकाश ने तिहाड़ जेल में 10वीं और 12वीं की सजा सुनाई।
ओम प्रकाश का पहला चुनाव
शुरूआत ने 1968 में राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अपना पहला चुनाव पिता देवीलाल की सीट ऐलनाबाद से लड़ा। इस चुनाव में उन्हें विशाल हरियाणा पार्टी के उम्मीदवार लालचंद खोद ने हरा दिया था। अपनी हार को उन्होंने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने लालचंद का नामांकन रद्द कर दिया। इसके बाद 1970 में अंतिम संस्कार हुआ। इसमें जनता ने दल के टिकटों पर चुनाव और जीत दर्ज की। इसके बाद ओम प्रकाश ने राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा।
साल 1989 में जब देवीलाल केंद्र की राजनीति से दिल्ली गये तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दो दिसंबर 1989 को अपने बड़े बेटे आमिर खान का रुख किया। जिस समय मुख्यमंत्री बने उस समय वो राज्य सभा के सदस्य थे। मुख्यमंत्री बने रहने के लिए डेमोक्रेट नेता की नियुक्ति जरूरी थी। ऐसे में देवीलाल ने उन्हें अपनी परंपरा महम सीट से चुनावी मैदान में उतारा। ये सीट देवीलाल के खाली हो गई थी। लेकिन उनका यह फैसला खाप पंचायत के खिलाफ सामने आया। खाप का कहना था कि देवीलाल अपने प्रभारी आनंद सिंह दांगी को चुनावी मैदान में उतारेंगे। लेकिन देवीलाल इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि वो 'महम का वहम' निकाल देंगे। इससे खप नाराज हो गया. खाप ने आनंद सिंह दांगी को अवशेष पार्टियाँ मैदान में उतारा। दांगी उस समय हरियाणा सैन्य सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष थे।
मेहम कांड कब हुआ था
महम में 27 फरवरी, 1990 को मतदान हुआ। इस दौरान भीषण हिंसा और बूथों की घटनाएं हुईं। चुनाव आयोग ने आठ बूथों पर मतदान किया। मतदान में भी हिंसा हुई. इस पर चुनाव आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया. आयोग ने 27 मई को फिर से चुनाव की तारीखें तय कीं. लेकिन मतदान से पहले ही प्रतियोगी उम्मीदवार अमरीक सिंह की हत्या कर दी गई। अमरीक को डांगी का वोट कटर के लिए लॉन्च किया गया था। दांगी और अमरीक मदीना गांव में रहने वाले थे। हत्या का आरोप दांगी पर लगा. जब पुलिस दांगी को उनके घर के पास से गिरफ़्तार कर रही थी, तो उनके समर्थक भड़क गए। पुलिस ने छापेमारी कर तोड़फोड़ की. इसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी। यह घटना महम कांड के नाम से जानी जाती है।
महम कांड की वजह से फोटोग्राफर को पांच महीने में ही छुट्टी मिल गई। उनकी जगह बनारसी दास मुख्यमंत्री गुप्ता ने बनाई थी। इसके कुछ दिन बाद दड़बा सीट से लेकर अजमेर तक की शुरुआत हुई। 51 दिन बाद बनारसी दास को सीएम पद मिला। इसके बाद दूसरी बार 12 जुलाई 1990 को मुख्यमंत्री बने। लेकिन महम स्कैंडल की 'डोनाल्ड' फिर से नहीं हुई थी। इस वजह से पांच दिन बाद ही 17 जुलाई को लॉन्च को छोड़ दिया गया। उनकी जगह मास्टर हुकुम सिंह फोगाट मुख्यमंत्री बने।
दल में टूट के बाद बने मुख्यमंत्री
केंद्र में वीवीपी सिंह की सरकार बनने के बाद जनता दल टूट गया. देवीलाल ने चन्द्रशेखर का साथ दिया. वो के चन्द्रशेखर सरकार में भी उपप्रधानमंत्री बने। इसके चार महीने बाद 1991 में देवीलाल हुकुम सिंह को 22 मार्च 1991 को टोकियो में तीसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया। उनके इस फैसले से उनकी पार्टी के कई विधायक नाराज हो गए।नाराज़ बिश्राम ने पार्टी छोड़ दी।इससे राज्य सरकार 15 दिन में ही 6 अप्रैल 1991 को गिर गई। राज्य में राष्ट्रपति शासन को त्यागपत्र दिया गया।चौटाला को 15 महीने में तीसरी बार मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिया गया।
साल 2022 में गुरुग्राम के एक अस्पताल में ओम प्रकाश का हालचाल आवेश प्रसाद यादव।
देवीलाल ने 1996 में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का गठन किया। 24 जुलाई 1996 को वे चौथी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। दूसरे दिन 24 जुलाई 1996 को अंबालाल की हरियाणा विकास पार्टी के पोर्टफोलियो में यह सरकार बनी। इसके बाद 2000 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए। इनेलो ने बीजेपी से की सहमति. इस गठबंधन ने मुफ़्त बिजली और कर्ज़ माफ़ी का वादा किया।परिणाम यह हुआ कि इनेलो अकेले ही बहुमत में मिल गई। इसके बाद लोधी रोड़ बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने।वो 2005 तक मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और चौधरी भूपेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने।
जेबीटी अकादमी में हुई सजा
मुख्यमंत्री के निवास हरियाणा के 18 जिलों में शिक्षक भर्ती घोटाला सामने आया। इसमें मनमाने तरीके से 3206 जूनियर ट्रेनिंग टीचर्स (जेबीटी) की भर्ती का आरोप था। प्राथमिक शिक्षा के निदेशक संजीव कुमार ने यह घोटाला उजागर किया। सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में उनकी दस्तावेज़ी दस्तावेजों से जांच की। 2004 में, उनके बेटे अजय देवगन, एसडी विद्याधर, राजनीतिक सलाहकार शेर सिंह बड़शामी और कुछ अन्य लोगों के नाम दर्ज किए गए। दिल्ली की एक विशेष साकेत कोर्ट ने 2013 में इस मामले में डुप्लिकेट और अजय सिंह को 10 साल की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी दी सजा ओ
2018 में केंद्र सरकार की विशेष माफ़ी योजना के तहत दिल्ली हाई कोर्ट में माफ़ी के लिए दस्तावेज़ दाखिल किए गए। इस योजना के तहत 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के जिन कारावासियों को उनकी आधी सजा काट ली जाती है, उन्हें रिहा कर दिया जाता है। उस समय सामने आई उम्र करीब 83 साल थी. अदालत ने उनके जारी किए गए नोटिस पर अपना अविश्वास व्यक्त किया। इसके बाद 2 जुलाई, 2021 को तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया।
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