जाति आधारित आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने दलित कोटे में उपवर्गीकरण को ठहराया सही, जस्टिस गवई की टिप्पणी
India News: सुप्रीम कोर्ट ने जाति आधारित आरक्षण में उपवर्गीकरण को सही ठहराते हुए सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया है। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने लंदन के ऑक्सफोर्ड यूनियन में कहा कि यह कदम ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों को समान अवसर देगा। यह फैसला उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, जो अब तक हाशिए पर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 7 जजों की बेंच में 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाया। बेंच ने कहा कि अनुसूचित जाति (एससी) एक समान समूह नहीं है। इसमें सामाजिक और आर्थिक अंतर मौजूद हैं। इसलिए, जाति आधारित आरक्षण में उपवर्गीकरण जरूरी है। इसने 2004 के फैसले को पलट दिया, जिसमें दलित समुदाय को एकरूप माना गया था।
जस्टिस गवई की टिप्पणी
ऑक्सफोर्ड यूनियन में जस्टिस गवई ने कहा, “जाति आधारित आरक्षण का उपवर्गीकरण आरक्षण नीति पर हमला नहीं है। यह उन वर्गों को न्याय देता है, जो अब तक वंचित रहे।” उन्होंने भारतीय संविधान को सामाजिक दस्तावेज बताया, जो गरीबी, भेदभाव और अन्याय को दूर करने पर जोर देता है। यह टिप्पणी सामाजिक समानता की दिशा में एक मजबूत संदेश देती है।
राज्यों में उपवर्गीकरण की शुरुआत
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हरियाणा और ओडिशा ने एससी कोटे में उपवर्गीकरण लागू किया। यह कदम उन जातियों को लाभ पहुंचाने के लिए है, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे कमजोर हैं। उदाहरण के लिए, हरियाणा ने एससी वर्ग में अति-पिछड़े समूहों के लिए अलग कोटा निर्धारित किया।
संविधान और सामाजिक न्याय
जस्टिस गवई ने जोर देकर कहा कि भारतीय संविधान सभी की गरिमा सुनिश्चित करता है। जाति आधारित आरक्षण का उद्देश्य भेदभाव को खत्म करना और समान अवसर देना है। यह फैसला उन लाखों लोगों के लिए आशा का प्रतीक है, जो सदियों से सामाजिक अन्याय का शिकार रहे हैं।
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