अनूठे जहाज़ – ख्यातोस्लाव साखर्नीव ( Wondorous Ships In Hindi by Svyatoslav Sakharnov)
सागरों में जहाज चलते हैं। भाप छोड़ते हैं, नुकीले सिरों से पानी को चीरते हैं और अपने काम-काज पूरे करने की उतावली में रहते हैं।
किसी जहाज की धुआं-चिमनी ऊंची होती है और किसी की नीची। कोई तो तीन बजरे आसानी से खींच ले जाता है और कोई खुद भी बड़ी मुश्किल से रेंगता है। कुछ जहाज सुन्दर होते हैं और कुष्टछ भद्दे। प्रत्येक भिन्न-भिन्न होता है।
इन जहाजों के भाग्य भी अलग-अलग होते हैं- कोई खुशकिस्मत, तो कोई बदकिस्मत, किसी को बड़ा आदर-सत्कार मिलता है, तो किसी को भुला दिया जाता है।
लोगों की तरह जहाज भी अलग-अलग और अनूठे होते हैं।
अनुवादक : मदनलाल ‘मधु’ चित्रकार : व्लादीमिर सूरिकोव
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