डिजिटल अमरता: 2050 तक इंसान का दिमाग कंप्यूटर में अपलोड हो सकता है? जानें कैसे इंसान हो जाएगा अमर
Global News: मानव सभ्यता ने हमेशा अमरता की खोज की है। वैदिक काल में ऋषि-मुनि तपस्या से इसे प्राप्त करना चाहते थे। अब विज्ञान ने इस खोज को नई दिशा दी है। फ्यूचरोलॉजिस्ट डॉ. इयान पियर्सन के अनुसार, डिजिटल अमरता की दिशा में तकनीकी प्रगति तेजी से बढ़ रही है। वे कहते हैं कि 2050 तक इंसान अपनी यादों, व्यक्तित्व और चेतना को कंप्यूटर या रोबोट में अपलोड कर सकता है। यह प्रक्रिया, जिसे माइंड अपलोडिंग कहते हैं, मृत्यु के बाद भी डिजिटल रूप में जीवन को संभव बना सकती है।
माइंड अपलोडिंग: तकनीकी क्रांति का अगला कदम
डॉ. इयान पियर्सन, जो बीटी की फ्यूचरोलॉजी यूनिट के प्रमुख रहे हैं, का मानना है कि 2050 तक डिजिटल अमरता अमीर वर्ग के लिए संभव होगी। 2060-2070 तक यह तकनीक मध्यम वर्ग तक पहुंच सकती है। उनके अनुसार, ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जरिए मानव मस्तिष्क का डेटा डिजिटल रूप में संरक्षित किया जा सकेगा। पियर्सन का कहना है कि यह तकनीक इंसान को क्लाउड में “जीवित” रखेगी, जहां वह आभासी दुनिया में अनुभव कर सकता है। यह विचार ब्लैक मिरर जैसे टीवी शो में दिखाए गए “सैन जुनिपेरो” एपिसोड की तरह है, जहां चेतना को क्लाउड में अपलोड किया जाता है।
रे कुर्जवील की भविष्यवाणी
पूर्व गूगल इंजीनियर रे कुर्जवील भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भविष्यवाणियां कर चुके हैं। उनकी किताब “द सिंगुलैरिटी इज नियर” में उन्होंने कहा है कि 2029 तक AI मानव बुद्धि के बराबर होगी। 2030 तक मानव दिमाग क्लाउड से जुड़ सकेगा, और 2045 तक इंसान साइबोर्ग बन सकता है। X पर एक यूजर ने उनकी भविष्यवाणी को उद्धृत करते हुए लिखा, “रे कुर्जवील का दावा है कि नैनोटेक्नोलॉजी और AI से हम 2030 तक डिजिटल अमरता के करीब होंगे।” उनकी कई भविष्यवाणियां, जैसे स्मार्टफोन का उदय, पहले सच साबित हो चुकी हैं।
तकनीकी और नैतिक चुनौतियां
डिजिटल अमरता की राह में कई चुनौतियां हैं। न्यूरोसाइंटिस्ट मिगुएल निकोलिस का कहना है कि मस्तिष्क की जटिलता को पूरी तरह डिजिटल रूप में कॉपी करना असंभव है, क्योंकि चेतना केवल डेटा प्रोसेसिंग का परिणाम नहीं है। इसके अलावा, नैतिक सवाल भी उठते हैं:
- क्या डिजिटल कॉपी वास्तव में “आप” होगी, या सिर्फ आपकी नकल?
- क्या यह तकनीक केवल अमीरों के लिए उपलब्ध होगी, जिससे सामाजिक असमानता बढ़ेगी?
- डिजिटल चेतना के डेटा का मालिकाना हक किसके पास होगा? क्या कॉरपोरेट्स इसका दुरुपयोग कर सकते हैं?
X पर एक यूजर ने लिखा, “अगर हमारा दिमाग क्लाउड में होगा, तो क्या हमारी निजता सुरक्षित रहेगी? यह डरावना है।” यह चिंता दर्शाती है कि लोग इस तकनीक को लेकर उत्साहित और चिंतित दोनों हैं।
तकनीकी प्रगति और संभावनाएं
वर्तमान में, न्यूरोप्रोस्थेटिक्स और AI में प्रगति हो रही है। न्यूरालिंक जैसी कंपनियां मस्तिष्क और कंप्यूटर को जोड़ने वाले इंटरफेस पर काम कर रही हैं। ह्यूमन कनेक्टोम प्रोजेक्ट मस्तिष्क के न्यूरल नेटवर्क को मैप करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। पियर्सन का कहना है कि जैसे आज का प्लेस्टेशन 3 मानव मस्तिष्क की 1% शक्ति के बराबर है, वैसे ही भविष्य में कंप्यूटर पूरी तरह मस्तिष्क की नकल कर सकेंगे। वे कहते हैं, “2050 तक आप अपने दिमाग को एक एंड्रॉयड शरीर में अपलोड कर सकते हैं और अपनी अंत्येष्टि में शामिल हो सकते हैं।”
सामाजिक और दार्शनिक प्रभाव
डिजिटल अमरता जीवन और मृत्यु की परिभाषा बदल सकती है। अगर चेतना को डिजिटल रूप में संरक्षित किया जा सके, तो क्या मृत्यु का डर खत्म हो जाएगा? X पर एक यूजर ने लिखा, “अगर हम हमेशा के लिए जी सकते हैं, तो जीवन का मूल्य क्या रह जाएगा?” यह सवाल दार्शनिक बहस को जन्म देता है कि क्या मृत्यु जीवन को अर्थ देती है। इसके अलावा, धार्मिक मान्यताएं, जैसे वैदिक दर्शन में आत्मा की अमरता, इस तकनीक के साथ टकरा सकती हैं।
भविष्य की संभावनाएं
पियर्सन और कुर्जवील जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि माइंड अपलोडिंग न केवल अमरता प्रदान कर सकती है, बल्कि इंसान को आभासी दुनिया में असीमित अनुभव भी दे सकती है। आप एक साथ कई स्थानों पर हो सकते हैं, या अपनी चेतना को अन्य लोगों के साथ जोड़ सकते हैं। लेकिन पियर्सन चेतावनी देते हैं कि अगर डेटा का नियंत्रण कॉरपोरेट्स के पास रहा, तो यह “डिजिटल गुलामी” का रूप ले सकता है।
Author: Kumar Shankar, Delhi